Saturday, September 11, 2010

जान से

अपनों से जुदा कर देती है ,आखों में पानी भर देती है ,
कितनी शिकायत है अपनी
जान से .
फिर भी इसका ऐतबार है ,फिर भी इसका इंतज़ार है ,
हमको मोहब्बत है अपनी
जान से .
कभी खुशियों का अम्बार लगा देती है , कभी तन्हां अकेला छोड़ देती है .
कभी हमपे करम फरमाती है ,कभी हमसे नज़र चुराती है .
पलकों से इसको चखते हैं ,हमेशा पास रहने की तमन्ना रखते हैं ,
इतनी नजाकत है अपनी
जान से .हमको मोहब्बत है अपनी जान से .
हमको अदाएं दिखाती है ये ,जीने-मरने की भी कसमें खाती है ये .
कभी पास है तो कभी दूर है ,मेरी जान भी बड़ी मशहूर है .
कभी करती है आँख मिचोली ,कभी सजाये सपनो की डोली ,
इतनी शरारत है अपनी
जान से .हमको मोहब्बत है अपनी जान से .
दूर ये हो तो गम होता है ,पास हो तो इसका करम होता है .
खुद अपनी मर्ज़ी से चलती है ,सूरज की तरह से ये ढलती है .
इसे जब भी हम देखते हैं ,मन ही मन ये सोचते हैं ,
कितनी हिफाज़त है अपनी
जान से .हमको मोहब्बत है अपनी जान से .
आंसू भी हो तो पी लेते हैं ,पल दो पल ख़ुशी से जी लेते हैं .
हर पल हमको नहीं है रोका ,थोडा हमको भी देती मौका .
जिंदगी गुजर जाए तकरार में ,चाहे गुजर जाए ये प्यार में ,
इतनी इज़ाज़त है अपनी
जान से .हमको मोहब्बत है
अपनी जान से .

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